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मासूमों की मौत के बाद टूटी नींद: अब सरकार को दिखे 1936 जर्जर स्कूल!

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जयपुर, 30 जुलाई 2025(न्याय स्तंभ)। राजस्थान के सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत पर आंखें मूंदे बैठी सरकार आखिरकार झालावाड़ हादसे के बाद जागी, जब मासूम बच्चों की मौत ने पूरे सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया। अब सामने आया है कि प्रदेश के 1936 स्कूल भवन गंभीर मरम्मत की हालत में हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये हकीकत पहले क्यों नहीं दिखी?

169 करोड़ मंजूर, लेकिन क्या ये काफी है?

समग्र शिक्षा निदेशालय की निदेशक अनुपमा जोरवाल के मुताबिक, प्रदेशभर के 1936 जर्जर स्कूलों के लिए सरकार ने 169 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है, जिसे केवल मरम्मत और जीर्णोद्धार कार्य में ही खर्च किया जाएगा। ठेकेदारों को भुगतान भी तभी मिलेगा जब वे “पूर्णता प्रमाण-पत्र” जमा करेंगे। लेकिन क्या यह कदम हादसे के बाद उठाया गया “डैमेज कंट्रोल” मात्र नहीं है? क्या सरकार यह बताएगी कि पिछले वर्षों में जो बजट आया, वो कहां गया?

क्या सिर्फ वर्तमान नहीं, पिछली सरकार भी बराबर की दोषी नहीं?

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी सरकारी स्कूलों की मरम्मत और रखरखाव को लेकर करोड़ों के बजट जारी हुए। लेकिन नतीजा क्या रहा? कागज़ों पर मरम्मत, रजिस्टरों में भुगतान, और ज़मीनी हकीकत में ढहते स्कूल। आज की भाजपा सरकार इस हादसे पर ‘कार्रवाई’ की बातें कर रही है, लेकिन जब वे विपक्ष में थे तब क्यों नहीं इस हालत को मुद्दा बनाया गया? और अब जब सत्ता में हैं तो सिर्फ अफसरों को बलि का बकरा बनाकर क्या वो खुद जिम्मेदारी से बच सकते हैं?

राजनीतिक और प्रशासनिक ज़िम्मेदारी अधूरी

झालावाड़ की विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जिनके पास वर्षों तक पूरे राज्य की कमान रही, वे आज खुद अपने गृह क्षेत्र के जर्जर स्कूलों की बदहाली के लिए जिम्मेदार हैं। जिले के सांसद दुष्यंत सिंह भी इस हादसे के सीधे तौर पर उत्तरदायी हैं, क्योंकि यह उनकी निगरानी में आने वाला क्षेत्र है, और उन्होंने कभी स्कूलों की जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया। वहीं मनोहरथाना विधायक गोविंद प्रसाद, जिनके क्षेत्र में यह दर्दनाक हादसा हुआ, उन्होंने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। सिर्फ शिक्षकों को निलंबित कर देना न तो शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी से उन्हें मुक्त करता है, न ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की। असली दोष उन अफसरों और नेताओं का है जो इन स्कूलों को सिर्फ कागजों में ‘फिट टू यूज़’ बता कर करोड़ों का बजट हजम कर चुके हैं।

हर साल लाखों का बजट,फिर क्यों नहीं सुधरती स्कूलों की हालत?
क्यों AEN, JEN और इंजीनियर जर्जर भवनों को “फिट टू यूज़” का सर्टिफिकेट देकर फाइलें निपटा देते हैं?
क्यों अफसरों के घर चमकते हैं, और स्कूलों की छतें गिरती हैं? यह सवाल आम जनता ही नहीं, पूरे शिक्षा तंत्र से पूछा जाना चाहिए की अगर 1936 स्कूल जर्जर हालत में हैं, तो इतने सालों से उनकी रिपोर्ट कहां थी? स्कूलों के रखरखाव का जिम्मा जिन AEN और JEN अफसरों पर है, क्या वो केवल फाइलों पर मरम्मत दिखा रहे थे?

सिर्फ निलंबन नहीं, चार्जशीट बनाओ

जिन परिवारों के नौनिहाल इस हादसे का शिकार हुए हैं उनकी यही मांग हैं कि जिन इंजीनियरों ने झूठे सर्टिफिकेट दिए, उन पर FIR दर्ज हो। शिक्षा विभाग के अफसरों की प्रॉपर्टी जांच हो। वहीं उन्होंने पूर्व और वर्तमान सरकार पर भी नाकामी का आरोप लगाया है।



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