3 साल कांग्रेस रही जनता पर भारी, अब भाजपा से भी 2 साल में ही जयपुर की जनता हारी
जयपुर, 22 अगस्त 2025(न्याय स्तंभ) । पिछली सरकार ने जयपुर को दो नगर निगमों में बांटकर अपनी पीठ जरूर थपथपाई, लेकिन शहर के लिए कोई ठोस दूरदर्शी योजना नहीं बनाई। नई भाजपा सरकार आने के बाद जनता को उम्मीद थी कि हालात बदलेंगे, मगर दो साल बीत जाने के बाद भी तस्वीर जस की तस है।
वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों का कहना है कि ग्रेटर और हेरिटेज दोनों ही नगर निगमों में जनता विकास कार्यों के लिए तरस रही है। पार्षद चाहे भाजपा के हों या कांग्रेस के, सभी अपने वार्डों के बजट और योजनाओं को लेकर असहाय नजर आ रहे हैं। हेरिटेज निगम में तो कांग्रेस और अब भाजपा समर्थित महापौर कुसुम यादव पर सीधे भ्रष्टाचार और अधिकारियों से मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। अवैध निर्माण, फर्जी पट्टे और टेंडरों में गड़बड़ियों ने जनता का भरोसा तोड़ दिया है।
वहीं ग्रेटर नगर निगम में महापौर सौम्या गुर्जर पर खुद की छवि चमकाने के आरोप लग रहे हैं। पार्षदों का कहना है कि सफाई और मूलभूत सुविधाओं पर खर्च करने की बजाय निगम का पैसा रिकॉर्ड बनाने और प्रचार में खर्च कर दिया गया। कई पार्षद उनके कार्यकाल को अब तक का सबसे कमजोर कार्यकाल बता रहे हैं।
शहर की टूटी सड़कों, बेहिसाब अतिक्रमण, बड़े-बड़े अवैध निर्माण, जगह-जगह कचरे के ढेर, निगम के पार्कों की बदहाली और जन्म-मृत्यु पंजीकरण के लिए ई-मित्र केंद्रों के चक्कर काटते लोगों ने भले ही खुलकर कुछ नहीं कहा, लेकिन मन ही मन हिसाब बराबर करने की ठान ली है। जनता का कहना है कि जब निगम मूलभूत सुविधाओं पर ही काम नहीं कर पा रहा तो ऐसे विभाग का कोई मतलब नहीं। न सरकार को राजस्व का फायदा हो रहा है और न ही छवि का।
निकाय चुनाव पास ही होने के कारण हेरिटेज निगम में आयुक्त डॉ. निधि पटेल और ग्रेटर निगम में आयुक्त गौरव सैनी को भी राजनीतिक खींचतान और सरकार के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। जानकारों का कहना है कि कई फैसले उनके स्वभाव और नियमों के विपरीत भी लेने पड़ रहे हैं जो जनता के लिए तो सही है लेकिन कुछ लोग उससे प्रभावित हो रहे हैं।
जनप्रतिनिधियों का कहना है कि चुनाव नजदीक हैं और जनता के सामने जाने के लिए उनके पास कोई ठोस विकास कार्य नहीं है। उनका कहना है कि डबल इंजन की सरकार का इंजन जयपुर के विकास करते-करते पटरी से ही उतर गया है। दोनों नगर निगमों की खींचतान और कमजोर नेतृत्व का नतीजा यह है कि जनता को आज भी विकास और मूलभूत सुविधाओं के नाम पर समझौता करना पड़ रहा है।