बच्चों की जान से ज़्यादा ‘सम्मान’ बचाने में जुटा शिक्षा विभाग!
जयपुर, 31 जुलाई 2025 (न्याय स्तंभ)। झालावाड़ में सरकारी स्कूल में हुए दर्दनाक हादसे के बाद अब शिक्षा विभाग ने हालात सुधारने की बजाय, शिक्षकों पर शिकंजा कसने का फरमान जारी कर दिया है। आदेश साफ है कि अब कोई भी शिक्षक स्कूल की खस्ता हालत के बारे में मीडिया या सोशल मीडिया पर कुछ नहीं बोलेगा। यानी अगर आपके स्कूल की छत गिर रही हो, दीवारें ढह रही हों या बिजली की तारें बच्चों के सिर पर लटक रही हों तो भी चुप रहो, वरना सस्पेंशन तय है!
हैरानी की बात ये है कि खुद शिक्षा विभाग मानता है कि राज्य के 1936 स्कूल जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, और उनके सुधार के लिए करोड़ों का बजट भी पास किया गया है। मगर जैसे ही किसी शिक्षको ने हकीकत उजागर की, तो उन पर कार्रवाई शुरू हो गई। कई शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया है। और बाकी को धमकी के तौर पर फरमान पकड़ा दिया गया है कि मीडिया से दूर रहो, वरना नौकरी से भी दूर हो जाओगे।
सूत्रों के मुताबिक विभाग ने मौखिक रूप से ये भी निर्देश दे दिए हैं कि मीडिया को स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जाए, और कोई भी शिक्षक सार्वजनिक रूप से कुछ भी न बोले। लेकिन यहां सबसे बड़ी बात ये है कि उन अभिभावकों को सच बोलने से कौन रोकेगा जिनके बच्चे वहां पढ़ते हैं। उन समाजसेवियों को कौन रोकेगा जो जिम्मेदारों को जर्जर विद्यालयों का रास्ता दिखाते हैं। और मीडिया के सामने सरकार और अधिकारियों की पोल खोलते हैं।
पहले कभी नहीं देखा ऐसा शिक्षा मंत्री!
अभिभावकों का कहना है कि ऐसा शिक्षा मंत्री पहले कभी नहीं देखा जो बच्चों की सुरक्षा की बजाय, अपने ‘सम्मान’ की रक्षा के लिए शिक्षकों की आवाज बंद करने में लगा है। सवाल यह है कि जब बच्चों की जान पर बनी हो तो क्या शिक्षकों को बोलने का हक नहीं? क्या मंत्रीजी को बच्चों से ज़्यादा अपने पद की चिंता है?
अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अभिभावक सोच में पड़ गए हैं, कि बच्चों को बारिश में स्कूल भेजें या नहीं? और शिक्षक इस डर में जी रहे हैं कि अगर हमने कुछ कहा, तो हम पर ही गाज गिरेगी।
यह मौन का फरमान नहीं, एक डर का माहौल है। जहाँ शिक्षक को बच्चों की जान की ज़िम्मेदारी तो दी गई है, मगर हालात बताने का हक छीन लिया गया है। शिक्षा मंत्री का काम आदेश निकालना नहीं, स्कूलों की हालत सुधारना है। वरना अगला हादसा बस एक बारिश दूर है।