(Nyay stambh exclusive)
जयपुर, 24 सितंबर 2025(न्याय स्तंभ)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत का आगामी 15 नवम्बर को जयपुर दौरा प्रस्तावित है। वे यहां एकात्म मानववाद विषय पर उद्धबोधन देंगे। यह कार्यक्रम सवाई मानसिंह स्टेडियम के इनडोर स्टेडियम में आयोजित होगा।
26 सितम्बर को होगी तैयारी बैठक
जानकारी के अनुसार, 26 सितम्बर को जयपुर में कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर अहम बैठक होगी। इस बैठक में 250 से अधिक स्वयंसेवक शामिल होंगे। बैठक में कार्यक्रम की रूपरेखा, अतिथियों को आमंत्रण और लोगों को एकात्म मानववाद की विचारधारा से मानसिक रूप से जोड़ने पर चर्चा होगी। स्वयंसेवकों में से ऐसे कार्यकर्ताओं की सूची भी बनाई जाएगी, जो केवल आमंत्रण ही नहीं देंगे बल्कि कार्यक्रम में आने वाले लोगों को विचारधारा समझाकर कार्यक्रम तक लेकर आएंगे।
ढाई से तीन हजार लोग होंगे शामिल
सूत्रों के अनुसार, इस कार्यक्रम में लगभग ढाई हजार से तीन हजार लोग शामिल होंगे। हालांकि इसमें आम स्वयंसेवक और साधारण कार्यकर्ता शामिल नहीं होंगे। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आमंत्रित किया जाएगा। इसमें बड़े शिक्षाविद, डॉक्टर, अधिवक्ता, धर्मगुरु, साधु-संत और जयपुर के सभी समाजों के प्रभावशाली लोग मौजूद रहेंगे। इन प्रबुद्ध लोगों से अपेक्षा होगी कि वे अपने-अपने समाज में एकात्म मानववाद की विचारधारा को आमजन तक पहुंचाने का कार्य करें।
राजनीतिक हस्तियां भी रहेंगी मौजूद
भागवत के इस कार्यक्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक और भाजपा के कुछ पदाधिकारी भी शिरकत करेंगे।
भागवत के कार्यक्रम का नहीं होगा प्रचार-प्रसार
इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि इसके प्रचार-प्रसार पर पूरी तरह मनाही रहेगी। न तो होर्डिंग्स लगेंगे, न बैनर और न ही किसी प्रकार का अन्य प्रचार होगा। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि भागवत का उद्धबोधन सुनने स्वतः ही हजारों लोग उमड़ते हैं। ऐसे में केवल आमंत्रित सदस्यों को ही बुलाया जाएगा।
एकात्म मानववाद क्या है?
एकात्म मानववाद भारतीय जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित विचारधारा है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित समाज व्यवस्था को प्रस्तुत करना है। इसमें व्यक्ति, समाज और प्रकृति को एक-दूसरे से अलग न मानकर एकात्म दृष्टिकोण से देखने की बात कही गई है। इस विचारधारा के अनुसार, विकास केवल आर्थिक या भौतिक उन्नति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के साथ संतुलित होना चाहिए।