केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के नेताओं पर जताई नाराजगी-सूत्र
जयपुर, 10 अप्रैल 2025(न्याय स्तंभ)। भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह फैसला उनके हालिया बयानों को लेकर लिया गया, जिन्हें पार्टी नेतृत्व ने ‘अनुशासनहीनता’ और ‘विवादास्पद बयानबाज़ी’ की श्रेणी में रखा। जहां विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, ने इस फैसले को “सही दिशा में उठाया गया कड़ा कदम” बताया है, वहीं खुद भाजपा के भीतर से विरोध के स्वर उठने लगे हैं। कई वरिष्ठ नेता और पुराने कार्यकर्ता इसे जल्दबाज़ी भरा और अपरिपक्व कदम बता रहे हैं।
भाजपा के अंदर मचा घमासान
पार्टी सूत्रों के मुताबिक ज्ञानदेव आहूजा को हटाए जाने का फैसला शीर्ष नेतृत्व द्वारा एकतरफा लिया गया, जिस पर स्थानीय संगठन और कई वरिष्ठ नेता पहले से सहमत नहीं थे। पार्टी के कुछ अनुभवी नेताओं का मानना है कि बयान की समग्रता को नज़रअंदाज़ कर कार्रवाई की गई। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा की ज्ञानदेव आहूजा के बयान में कहीं भी दलित या अनुसूचित जातियों के खिलाफ कोई सीधा या अपमानजनक शब्द नहीं था। उन्होंने अपनी राजनीतिक शैली में केवल कांग्रेस की आलोचना की थी। इस पर इतनी बड़ी कार्रवाई करना समझ से परे है।
केंद्रीय नेतृत्व ने जताई नाराजगी-सूत्र
सूत्रों के हवाले से खबर है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्ञानदेव आहूजा को पार्टी से निष्कासित किए जाने के फैसले पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने नाराजगी जताई है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय नेताओं ने ज्ञानदेव आहूजा का पूरा बयान सुना और पाया कि उसमें किसी जाति या वर्ग विशेष के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही गई थी। इस पर उन्होंने स्थानीय नेतृत्व द्वारा की गई जल्दबाज़ी पर सवाल उठाए हैं। सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व अब इस मुद्दे पर पुनर्विचार कर सकता है और जल्द ही स्थिति स्पष्ट की जाएगी।
कांग्रेस ने बताया राजनीतिक मजबूरी
कांग्रेस नेताओं ने भाजपा के इस फैसले को राजनीतिक मजबूरी बताया। उनका कहना है कि भाजपा चुनावी मौसम में अपने चेहरे चमकाने के लिए दिखावटी कार्रवाई कर रही है, लेकिन हकीकत में यह पार्टी अंदर से जातिगत विद्वेष और कट्टरता से भरी हुई है।
ज्ञानदेव आहूजा की सफाई के बाद गहराई राजनीति
भारतीय जनता पार्टी द्वारा वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को निष्कासित किए जाने के फैसले के बाद पार्टी के भीतर अंदरूनी खिंचतान और तेज हो गई है। इस पूरे घटनाक्रम में अब खुद ज्ञानदेव आहूजा ने भी अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सफाई दी है। उन्होंने कहा कि “न मेरा इरादा गलत था, न शब्द”। आहूजा ने कहा कि मेरी पार्टी सभी धर्मों, जातियों और वर्गों का सम्मान करती है और मैं भी उसी सोच को मानता हूँ। मैंने अपने बयान में कहीं भी दलित या अनुसूचित जातियों का अपमान नहीं किया। मेरी बात का संदर्भ सिर्फ राम मंदिर, राम सेतु और भगवान श्रीराम का विरोध करने वाले कांग्रेस नेताओं से था। मैंने गंगाजल से मंदिर इसलिए शुद्ध किया क्योंकि वहां राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित कांग्रेस नेता पहुंचे थे, जिन्होंने पहले भगवान राम के अस्तित्व तक को नकारा था।
पार्टी में मतभेद उभर कर सामने आए
ज्ञानदेव आहूजा की सफाई के बाद भाजपा के अंदर से भी आवाज़ें उठने लगी हैं कि उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया और पार्टी ने बिना आहूजा का पक्ष सुने उन पर एकतरफा फैसला सुना दिया। कुछ पुराने नेताओं ने कहा कि ऐसे निर्णय पार्टी की परिपक्वता पर सवाल खड़ा करते हैं। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा की अगर हर बयान पर मीडिया प्रेशर में आकर फैसले लिए जाएंगे, तो कार्यकर्ता कैसे निडर होकर अपनी बात कह पाएंगे? ज्ञानदेव आहूजा सिर्फ रामभक्तों की भावनाओं को लेकर बोल रहे थे, न कि किसी समाज के खिलाफ।