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आयुक्त निधि पटेल की सख्ती से निगम के लापरवाह अफसर जागे, जर्जर भवनों पर हुई कार्रवाई

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जयपुर। 19 सितंबर 2025 (न्याय स्तंभ)। नगर निगम हेरिटेज आयुक्त की सख्त हिदायतों के बाद आखिरकार निगम की टीमें जर्जर भवनों पर एक्शन मोड में नजर आईं। किशनपोल जोन और हवामहल आमेर जोन ने कार्रवाई करते हुए कई भवनों के हिस्से ध्वस्त किए और कुछ को सीज कर दिया। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या अफसर आयुक्त के आदेशों का पालन करने में अब भी ढिलाई बरत रहे हैं? क्या उन्हें किसी बड़े हादसे का इंतजार है?
किशनपोल जोन उपायुक्त दिलीप भंभानी ने जानकारी दी कि 14 जर्जर भवनों की रिपोर्ट निरीक्षण कमेटी को भेजी गई थी। इनमें से सात को पिछले सप्ताह गिराया गया था, जबकि शुक्रवार को दो और भवनों के हिस्से इंजीनियरिंग विंग की मदद से तोड़े गए। वहीं, लोहा मंडी नाटाणी के रास्ते में स्थित एक जर्जर भवन के नीचे चल रहे गोदामों को सीज कर संचालकों को मरम्मत के लिए पाबंद किया गया। कार्रवाई के दौरान सतर्कता शाखा की टीम भी मौजूद रही।
इसी बीच, हवामहल आमेर जोन उपायुक्त सीमा चौधरी ने 11 जर्जर भवनों का निरीक्षण किया। उन्होंने मकान मालिकों और वहां रह रहे परिवारों को तुरंत मकान खाली कर मरम्मत कराने के निर्देश दिए। एक जर्जर भवन को सीज भी किया गया। चौधरी ने भवन मालिकों से शपथ पत्र लेकर स्पष्ट किया कि या तो जर्जर हिस्सों को तुरंत ध्वस्त करें या फिर मरम्मत शुरू करें।
लेकिन सवाल अब भी बरकरार!
आयुक्त के आदेशों के बावजूद जोन उपायुक्त और निगम के कर्मचारी ढीला रवैया क्यों अपनाए बैठे हैं? बार-बार नोटिस और समझाइश के बाद भी भवन मालिक कार्रवाई में क्यों टालमटोल कर रहे हैं? क्या सभी हादसे का इंतजार कर रहे हैं, ताकि मौतें होने के बाद जागे?
भवन मालिकों की जिद्दी भी निगम की परेशानी
यह सही है कि अपना मकान बनाना हर किसी का सपना होता है और उसे गिराना किसी के लिए भी पीड़ादायक है। लेकिन मकान कभी भी इंसान की जान से बड़ा नहीं हो सकता। नगर निगम लगातार मकान मालिकों को समझा रहा है, नोटिस दे रहा है, मकान खाली करने के निर्देश दे रहा है, बावजूद इसके लोग अपनी और अपने परिवार की जान खतरे में डालकर जर्जर मकानों में डटे हुए हैं।
शहर के मकानों में किरायेदार सबसे बड़ी समस्या
पुराने शहर में जर्जर मकानों का एक बड़ा कारण किरायेदारी विवाद भी है। कई पुराने किरायेदार मकान खाली नहीं करते और अदालत में केस डालकर कब्जा जमाए रहते हैं। ऐसे में मकान मालिक मजबूर होकर देखता रह जाता है। नतीजा यह होता है कि मकान मालिक भी निगम के नोटिसों को गंभीरता से नहीं लेता और सोचता है कि मकान ढह जाएगा तो किरायेदार खुद ही खाली कर देगा।



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