-पं. नीरज शर्मा
जब दीपावली भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास से अयोध्या लौटने के उत्साह में मनाई जाती है तो फिर आखिर दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन क्यों होता है?, तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि दीपावली पर “लक्ष्मी पूजन” क्यों किया जाता है? श्रीराम की पूजा क्यों नहीं?
वास्तव में दीपावली उत्सव दो युगों — सतयुग और त्रेतायुग — से जुड़ा हुआ है। सतयुग में, इसी दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी जी का प्राकट्य हुआ था। वे उस दिन क्षीर सागर से प्रकट होकर भगवान विष्णु की अर्धांगिनी बनीं। इसलिए इस दिन को “लक्ष्मी प्रकटोत्सव” भी कहा जाता है, और इसी कारण से इस दिन “लक्ष्मी पूजन” किया जाता है।
त्रेतायुग में, इसी दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप प्रज्वलित किए थे। इसलिए इस पर्व का नाम पड़ा — दीपावली, यानी दीपों की पंक्ति।
इस प्रकार दीपावली पर्व के दो पहलू हैं —
“लक्ष्मी पूजन” जो सतयुग से जुड़ा है।
“दीपोत्सव” जो त्रेतायुग और भगवान श्रीराम से संबंधित है।
अब एक और रोचक प्रश्न ये भी…
लक्ष्मी और गणेश जी का आपस में क्या संबंध है, और दीपावली पर इन दोनों की पूजा साथ में क्यों होती है?
सागर मंथन के समय जब माता लक्ष्मी जी प्रकट हुईं और भगवान विष्णु से उनका विवाह हुआ, तब उन्हें धन और ऐश्वर्य की देवी घोषित किया गया। उन्होंने धन के वितरण के लिए कुबेर को अपना “मैनेजर” बनाया। लेकिन कुबेर स्वभाव से कुछ कंजूस थे, वे धन बांटने की बजाय संग्रह करने में ही लगे रहते थे। इससे माता लक्ष्मी चिंतित हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी व्यथा कही। भगवान विष्णु ने कहा की तुम्हें अपना मैनेजर बदल लेना चाहिए।
माता लक्ष्मी ने संकोच जताया की कुबेर मेरे परम भक्त हैं, उन्हें बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने सलाह दी कि वे श्री गणेश जी को यह दायित्व सौंप दें, जिनकी बुद्धि और विवेक अद्वितीय हैं। माता लक्ष्मी ने गणेश जी को धन के वितरण का कार्य सौंपा। गणेश जी ने कहा की
“माँ, मैं जिसका भी नाम लूँ, उस पर आप कृपा करना, कोई किंतु-परंतु नहीं। माँ लक्ष्मी ने सहमति दे दी।
तब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न दूर कर, उनके धनागमन के द्वार खोलने लगे।
कुबेर भंडारी रह गए, पर गणेश जी धन के दाता बन गए।
गणेश जी की उदारता देखकर माता लक्ष्मी प्रसन्न हुईं। उन्होंने गणेश जी को आशीर्वाद दिया की जहाँ मेरे पति नारायण न हों, वहाँ तुम मेरे पुत्रवत मेरे साथ पूजे जाओगे।”
कार्तिक अमावस्या को जब दीपावली आती है, उस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं और वे देवउठनी एकादशी को जागते हैं। इस अवधि में जब माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं, तो वे अपने साथ श्री गणेश जी को भी लेकर आती हैं। इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश पूजन का विधान है।
एक ओर माता लक्ष्मी धन और समृद्धि प्रदान करती हैं, वहीं गणेश जी बुद्धि और सौभाग्य के मार्ग खोलते हैं।
इसीलिए दीपावली के दिन हम दोनों की पूजा करते हैं —
लक्ष्मी जी के बिना समृद्धि अधूरी है, और गणेश जी के बिना सफलता असंभव।
यही कारण है कि दीपों के इस पावन पर्व पर हम “लक्ष्मी-गणेश पूजन” करते हैं , ताकि हमारे जीवन में धन के साथ बुद्धि और सौभाग्य दोनों का प्रकाश बना रहे।

