(न्याय स्तंभ विशेष विश्लेषण रिपोर्ट)
अंता बारां, 26 अक्टूबर 2025। अंता उपचुनाव भाजपा के लिए किसी साधारण परीक्षा से कम नहीं बल्कि यह एक राजनीतिक अग्निपरीक्षा बन चुका है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मोरपाल सुमन मैदान में जरूर हैं, लेकिन असली मुकाबला उम्मीदवारों से नहीं, बल्कि भाजपा के दो बड़े राजस्थान के दिग्गज नेताओं की आपसी खींचतान से है , जिनका प्रदेश ही नहीं, संगठन के शीर्ष स्तर तक गहरा प्रभाव है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की साख अब इन्हीं दो नेताओं के विवेक और इच्छाशक्ति पर टिकी है। एक ओर वो वरिष्ठ नेता हैं जिन्होंने हर हाल में मोरपाल सुमन को टिकट दिलवाया, वहीं दूसरी ओर उतने ही प्रभावशाली नेता प्रभुलाल सैनी के पक्ष में पूरी ताकत झोंक रहे थे।
टिकट की रेस तो तय हो गई है लेकिन भाजपा की असली चुनौती अब शुरू हुई है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि टिकट वितरण में खींचतान और गुटबाज़ी ने कार्यकर्ताओं में भ्रम फैला दिया है। सुमन समर्थक गुट पूरी ताकत में जुटा है, जबकि सैनी समर्थक खेमे की ठंडी सक्रियता भाजपा के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
इधर कांग्रेस इस बार मैदान में बेहद संगठित दिख रही है — और भाजपा की अंदरूनी तनातनी को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
इसी बीच नरेश मीणा का फैक्टर भी चुनावी समीकरणों को हल्का-फुल्का झटका दे रहा है। देखने को मिला कि मीणा का प्रभाव कई समाजों में है, पर जनता में उनके स्वभाव और व्यवहार को लेकर हल्की नाराजगी भी देखने को मिल रही है, जिससे उनका प्रभाव सीमित होता नजर आ रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि यदि इन दो दिग्गज नेताओं की खींचतान थमी नहीं और उनके समर्थक एकजुट नहीं हुए तो कांग्रेस इस चुनाव में अप्रत्याशित बढ़त हासिल कर सकती है। क्योंकि भाजपा के लिए यह सीट सिर्फ अंता की लड़ाई नहीं, बल्कि अनुशासन, नेतृत्व और समन्वय की परीक्षा है।
अगर दोनों नेता अपनी व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर संगठन के हित में साथ आते हैं तो भाजपा के लिए जीत की राह आसान हो सकती है। लेकिन अगर टकराव बरकरार रहा, तो अंता का यह परिणाम आने वाले वर्षों की राजनीति का संदेशवाहक बन जाएगा।
अंत में यही कहा जा सकता है कि अंता में अब असली जंग दो पार्टियों की नहीं, दो दिग्गजों की है। जीत उसी की होगी, जो अहंकार छोड़कर संगठन के लिए झुकेगा… और जिसे भाग्य का साथ मिलेगा।



