पंडित नीरज शर्मा/ न्याय स्तम्भ
ग्रहोपचार
जड़/हवन/बीज मंत्र द्वारा समस्त ग्रहों की पीड़ा दूर करें। भारी-भरकम अनुष्ठान बहुत महंगे रत्नों का खर्च आम जन नहीं कर सकते हैं।आईये आपको बहुत ही कम खर्चो से उससे ज्यादा लाभ कारी उपाय बता रहें हैं , करिये फिर बताईये कितना असरदार है ये उपाय।
सूर्य की पीड़ा होने पर – बेलपत्र की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से आराम मिलता है। यदि हवन किया जाए तो समिधा के रूप में आक का इस्तेमाल किया जाता है। सूर्य के कारण आ रही बाधा के निवारण के लिए मंत्र ‘’ऊं ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’’ जप करें।इस मंत्र के सात हजार जाप करना होगा।
चंद्र की पीड़ा होने पर – खिरनी की जड़ को सफेद डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होता है।चंद्रमा की शांति के लिए अगर हवन करते है तो,इसमें पलाश की लकड़ी का समिधा के रूप में इस्तेमाल करे।
चंद्र से बाधा होने पर-‘’ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:’’ का जप करने से लाभ होगा। इस मंत्र के ग्यारह हजार जाप करना होगा।
मंगल की पीड़ा होने पर –अनन्तमूल की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंगल शांति के लिए ‘’ऊं क्रां क्रीं कौं स: भौमाय नम:’’ के दस हजार जाप करने का प्रावधान बताया गया है।
बुध की पीड़ा होने पर – विधार की जड़ को हरे डोरे में बांधकर पहनने से पीड़ा दूर होती है। बुध की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में अपामार्ग को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंत्र जाप के रूप में ‘’ऊं ब्रां ब्रीं बौं स: बुधाय नम:’’ के नौ हजार पाठ करने का प्रावधान है।
बृहस्पति की पीड़ा होने पर – केले की जड़ को पीले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। गुरु ग्रह की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में पीपल को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। बृहस्पति पीडि़त होने पर ‘’ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:’’ के उन्नीस हजार पाठ करने से लाभ होता है।
शुक्र पीडि़त होने पर – सरपोंखा की जड़ को चमकीले धागे में बांधकर धारण करने से लाभ होता है। गूलर की समिधा को शुक्र शांति के यज्ञ में इस्तेमाल किया जाता है। शुक्र की बाधा के निवारण के लिए ‘’ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:’’ के सोलह हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।
शनि की पीड़ा होने पर – बिच्छु की जड़ को काले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होता है। शनि शांति यज्ञ में शमी की समिधा का उपयोग किया जाता है। शनि की पीड़ा के निवारण के लिए ‘’ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:’’ के 23 हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।
राहू की पीड़ा होने पर – सफेद चंदन की लकड़ी को पहनने से लाभ होता है। धागा उसी रंग का लिया जाएगा, जिस राशि में राहू स्थित है। राहू की पीड़ा के निवारण के लिए किए जाने वाले यज्ञ में दूर्वा का इस्तेमाल समिधा के रूप में किया जाता है। राहू की शांति के लिए ‘’ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:’’ के 18 हजार पाठ करने की सलाह दी जाती है।
केतू की पीड़ा होने पर – असगंध की जड़ को धारण करने से लाभ होता है। केतू के लिए भी राशि स्वामी के अनुरूप ही धागा लिया जाएगा। केतू की पीड़ा निवारण के लिए होने वाले यज्ञ में ‘’ऊं स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:’’ के दस हजार पाठ करने का प्रावधान है।
नोट– ग्रहों के जो समिधा बताई गईं है उसे हवन सामग्री में मिला कर समिधा तैयार करे।हवन सामग्री बाजार में बने बनाये मिलते है। मंत्रों का जप संख्या एक दिन में भी कर सकते है या संकल्प लेकर प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा करके पूरा कर सकते हैं। अपने ईष्ट देव का जाप निश्चित समय निश्चित जप संख्या सहित एक ही आसन पर अवश्य करें।