BREAKING NEWS
Search

आखिर क्यों बंद होते हैं मंदिरों के कपाट जब लगता है ग्रहण!

551

पं. नीरज शर्मा

जयपुर। 7 नवंबर 2022 (न्याय स्तंभ) आम आदमी के मन मे ये सवाल ग्रहण के दौरान जरूर उठता होगा कि आखिर ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट क्यों बंद कर दिए जाते हैं। भक्तों को दर्शन का लाभ ग्रहण हटने के बाद ही क्यों मिलता है।

तो पंडित नीरज शर्मा बता रहे हैं कि क्यों सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट क्यों बंद किए जाते हैं। शर्मा ने बताया कि यह परंपरा कई सदियों पुरानी है। हिंदू धर्म में ग्रहण से जुड़े बहुत से नियम माने जाते हैं। मंदिरों के कपाट बंद होना भी उन्हीं नियमों में से एक है।
माना जाता है की ग्रहण के दौरान देवी शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है और असुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है।

ग्रहण से जुड़ी परंपराएं
हिंदू धर्म में ग्रहण को लेकर कुछ परंपराएं काफी प्राचीन समय से चली आ रही है। जैसे ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए, इसके पीछे मान्यता है कि ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ और सोने पर भी इसका असर पड़ता है। इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा है मंदिर के दरवाजे बंद किए जाना। हिंदू धर्म में मंदिरों के अलावा घर में मौजूद पूजा स्थल को भी कपड़ों से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है। इस परंपरा के पीछे कई प्रकार की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि ग्रहण के दौरान देवी शक्तियों का प्रभाव कम होकर असुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है इसलिए इस दौरान पूजा पाठ करने की मनाही होती है।

मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दौरान मौन अवस्था में रहकर मंत्र जाप करना चाहिए। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ग्रहण के दौरान पृथ्वी के वायुमंडल में हानिकारक किरणों का प्रभाव ज्यादा होता है इसलिए इस दौरान खाने-पीने की मनाही होती है। मान्यताओं के अनुसार ग्रहण काल के बाद जब ग्रहण पूरी तरह से समाप्त हो जाए। तब सभी मंदिरों में देवी देवताओं की मूर्तियों को अच्छी तरह से धोया जाना चाहिए। साथ ही मंदिरों को भी सही ढंग से साफ किया जाना चाहिए। इसके बाद ही इन प्रतिमाओं को पुनः मंदिर में स्थापित कर सकते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

ग्रहण के दौरान भी कई मंदिर रहते हैं खुले
ग्रहण के दौरान भी कुछ मंदिरों के पट सामान्य दिनों की तरह ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुले रहते हैं।
लेकिन हिंदू परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार सूर्य या चंद्र ग्रहण मानव जीवन पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं। घर पर पूजा-अर्चना करने से इसके दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है। हालांकि ग्रहण के दौरान मंदिर के पट खुले और बंद होने को लेकर अलग-अलग मान्यता है। इसके पीछे का कारण यह मान्यता है कि जिन मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा होती है, वहां पर सूर्य या चंद्र ग्रहण के कारण से मंदिर का औरा भी प्रभावित होता है। ऐसे में मूर्ति को स्पर्श नहीं किया जाता, लेकिन कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जैसे शक्तिपीठ, महाकालेश्वर, गोविंद देव जी के मंदिर वहां पर सूतक काल में भी दर्शन खुले रहते हैं। लेकिन पूजा निषेध रहती है, उनकी मान्यता है कि इन मंदिरों में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा नहीं बल्कि उन्हें भगवान का साक्षात स्वरूप (विग्रह) माना गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है, जिसके कारण मंदिरों पर उसका प्रभाव देखने को मिलता है। ग्रहण के दौरान यहां नकारात्मक प्रभाव ना पड़े, इसे ध्यान में रखते हुए पट बंद कर दिए जाते हैं। वहीं जिन मंदिरों में भगवान के कपाट खुले हुए हैं, वहां भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती। मान्यताओं के अनुसार देवी-देवता ही इस तरह की खगोलीय घटनाओं के दुष्प्रभाव को रोक पाते हैं, इसलिए कुछ मंदिर इस विधान का अनुसरण करते हैं।

ग्रहण के दौरान क्या करें , क्या नहीं करें
मान्यता है कि ग्रहण काल में किसी तरह की खाद्य वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए।

गर्भवती महिलाओं और मंदबुद्धि को इसके के संपर्क में आने से बचाना चाहिए।

वहीं ग्रहण काल में यदि मंत्रोच्चार, भजन आदि करते हैं तो सूर्य की विकृत किरणों का असर कम होता है।



न्याय की अवधारणा को सशक्त बनाने हेतु समाचार पत्र न्याय स्तम्भ के माध्यम से एक अभियान चलाया जा रहा है। आइए अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए आप भी हमारा साथ दीजिये। संपर्क करें-8384900113


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *