शुक्र अशुभ तो सांसारिक सुखों में होती है कमी

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पं नीरज शर्मा
जयपुर। (न्याय स्तंभ)यदि कुंडली में शुक्र अशुभ है तो आर्थिक कष्ट, स्त्री सुख में कमी, प्रमेह, कुष्ठ, मधुमेह, मूत्राशय संबंधी रोग, गर्भाशय संबंधी रोग, गुर्दे का दर्द, अंतड़ियों के रोग, त्वचा संबंधी रोग, नसों से सम्बंधित रोग और गुप्त रोगों की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही सांसारिक सुखों में कमी आती प्रतीत होती है।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र छठे, आठवें,बारहवें भाव में हो या अत्यंत कमजोर होकर किसी भी भाव में हो तो उस जातक को जीवन भर भौतिक सुख साधनों का किसी ना किसी प्रकार से अभाव रहता है।
यदि तुला, मकर, कुम्भ लग्न के अलावा किसी भी लग्न में शुक्र-गुरू की युति हो तो इस युति का कोई भी शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
यदि शुक्र-मंगल की युति हो तो उस जातक के अंदर हिंसक सेक्स की मनोवृति की संभावना बहुत अधिक रहती है।
यदि यह योग स्त्री जातिका की कुंडली में हो तो माता पिता को अपनी सन्तान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
यदि कुंडली में शुक्र कमजोर हो तो जातक को वीर्य की कमी हो जाती है। इससे किसी भी प्रकार का यौन रोग हो सकता है या जातक में कामेच्छा समाप्त हो जाती है।
यदि शुक्र-शनि की युति हो तो वह जातक बड़ी उम्र की स्त्रीयों में विशेष रूचि रखता है, ऐसा भी हो सकता है कि जातक की पत्नी उससे ज्यादा उम्र की हो।
यदि कुंडली में शुक्र अत्यंत कमजोर हो तो, उस जातक को भौतिक सुख साधनों का अभाव सदा ही महसूस होता रहता है।
यदि कुंडली में शुक्र कमजोर हो तो जातक के शरीर में त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
यदि कुंडली में बारहवें भाव में शुक्र हो तो यह जातक जीवन में एक बार जरूर सम्पन्न होता है। परन्तु उस पुरुष जातक के एक से अधिक स्त्रियों से सम्बन्ध होने की सम्भावना प्रबल होती है। और उसे किसी ना किसी प्रकार से लज्जित या अपमानित भी होना पड़ता है।

यदि कुंडली में शुक्र-राहू की युति हो तो यह जातक अत्यधिक कामुक होता है। जिससे अपना कार्य व्यवसाय भी ठीक से नहीं कर पाता है।
यदि शुक्र कर्क, सिंह, या कन्या राशि का हो और वह 1, 4, 5, 7, 9 एवं 10 वें भाव में हो तो जातक को काफी कठिनाइयों के बाद जीवन में सभी भौतिक सुख जरूर प्राप्त होते हैं।
यदि कुंडली में शुक्र कमजोर हो तो जातक को लगातार हाथ के अंगूठे में दर्द रहती है या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है।
यदि शुक्र कमजोर होकर 1, 4, 7, 10वें भाव में ना हो तो जातक को स्त्री सुख में बाधाएं आती ही रहती है, जिसके कारण शरीरिक सुख में भी न्यूनता रहती है।



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