विधि तथा न्याय की भारतीय दृष्टि विषय पर अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत

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जयपुर। 15 नवंबर 2024(न्याय स्तंभ) । राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग तथा पंचवर्षीय विधि महाविद्यालय द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा में विधि एवं न्याय की अवधारणा विषय पर अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। इस दौरान संगोष्ठी में वर्तमान विधिक विकास तथा भारतीय न्याय संहिता, 2023 के आलोक में विधि एवं न्याय की अवधारणाओं पर भारतीय दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श किया गया। संगोष्ठी में संयुक्त राज्य अमरीका, नेपाल समेत भारत भर के 22 राज्यों के 150 तथा राजस्थान राज्य के 500 से अधिक विद्वान शामिल हुए हैं।

उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो। सुरेन्द्र कुमार ने मनुस्मृति के मूल उद्धरणों से भारत की प्राचीन न्याय तथा दण्ड व्यवस्था पर प्रकाश डाला। उन्होंने मनुस्मृति तथा जाति व्यवस्था सम्बन्धित भ्रान्तियों को दूर किया। कार्यक्रम के अतिथि उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के विद्वान् प्रो। रघुनाथ घोष ने बताया कि प्राचीन भारतीय विधि व्यवस्था में विधि का अर्थ वैधानिकता तथा नैतिकता दोनों से था। उन्होंने मानवीय जीवन को अर्थवान बनाने में विधि की भूमिका पर प्रकाश डाला।

समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अशोक कुमार जैन ने संबोधित करते हुए विधि संहिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय विधि संहिता के अधिकांश कानून तथा अधिनियम मूलतः भारतीय परम्परा में पहले से ही विद्यमान थे। उन्होंने इस दौरान शासक का दायित्व स्पष्ट करते हुए बताया कि वास्तविक न्याय धर्म, सत्य तथा नैतिकता के ऐक्य से ही संभव हो सकता है। वहीं उन्होंने इस बात पर बल दिया कि न्यायलय में याचिका अन्तिम उपाय होना चाहिए, उससे पहले मध्यस्थता तथा अनौपचारिक ढंग से मामले के निस्तारण का प्रयास किया जाना चाहिए। भारतीय परम्परा में ऐसा ही प्रचलित था।
इस दौरान राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो। अल्पना कटेजा ने प्राचीन भारतीय विचारकों बृहस्पति, कात्यायन, शुक्र, कामन्दक आदि के उद्धरणों से भारतीय न्याय व्यवस्था तथा दण्ड प्रणाली के प्राचीन रूप पर व्याख्यान दिया। उन्होंने संगोष्ठी में विचारार्थ अनेक प्रश्न विद्वानों के सामने रखे ।
संगोष्ठी के संयोजक संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो। राजेश कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। वहीं संगोष्ठी के उद्देश्य तथा विचारणीय विषयों का परिचय दर्शनशास्त्र विभाग के शिक्षक डॉ। अनुभव वार्ष्णेय ने दिया। उद्घाटन सत्र के अन्त में संगोष्ठी के आयोजन सचिव तथा पंचवर्षीय विधि महाविद्यालय के निदेशक डॉ। अखिल कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। संगोष्ठी के पहले दिन देश- विदेश से आये लगभग 100 विद्वानों का सम्मान किया गया। चार सत्रों में विभिन्न विषयों पर लगभग 200 शोध पत्रों का वाचन किया गया।



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