मतीष पारीक
जयपुर 5 मई 2022(न्याय स्तंभ)। राजस्थान में राज्यसभा के चुनाव बेहद रोचक होते जा रहा है। जहां भाजपा ने अपने पुराने कद्दावर नेता और ब्राह्मण समाज के नेताओं में शुमार घनश्याम तिवाड़ी को टिकट दिया हैं वहीं सुभाष चंद्रा को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दिया है।
लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि जिन सुभाष चंद्रा पर भाजपा ने दांव लगाया है वो तो कैसे ना कैसे अपनी नैया पार लगा लेंगे लेकिन क्या घनश्याम तिवाड़ी अपनों से ही जीत पाएंगे।ये सही है कि घनश्याम तिवाड़ी के नाम पर मोहर लगते ही लोगों में हर्ष की लहर दौड़ी थी लेकिन वहीं दूसरी ओर ब्राह्मण समाज के स्वयंभू बड़े नेता उनको अपना जानी-दुश्मन मान बैठे हैं।
सूत्रों से जानकारी मिली है कि भाजपा के कुछ कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी की राज्यसभा टिकट को लेकर खासे नाराज नजर आते हैं वो सामने तो कुछ नहीं कर पा रहे क्योंकि आलाकमान के आदेश पर टिकट मिला है लेकिन अंदरखाने वो तिवाड़ी को पटखनी देने की प्लांनिग कर रहे हैं।
यहां ये कयास सही भी हो सकता है क्योंकि तिवाड़ी के राज्यसभा सांसद बनने से कई लोगों को अपनी जमीन खिसकने का डर है। भाजपा में कई ब्राह्मण नेता नहीं चाहते कि तिवाड़ी अपनी पुरानी फॉर्म में वापस आएं इसलिए येन-केन-प्रकारेण वे तिवाड़ी को राज्यसभा में नहीं पहुंचने देने की जुगत लगा रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर कुछ मंझे हुए राजनीतिज्ञों का कहना है कि जैसे ही तिवाड़ी राज्यसभा में चुने जाते हैं वेसे ही राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष पद पर इनकी ताजपोशी होना तय है क्योंकि आलाकमान आने वाले विधानसभा चुनावों में किसी प्रकार का रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं।
तिवाड़ी ज्ञान और विज्ञान में माहिर
जानकारों ने तो यहां तक कहा है कि तिवाड़ी सत्ता और संगठन के पुराने जानकार हैं जो सबसे तालमेल रखने में माहिर है और अपनी वाकचातुर्यता के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
लोग यहां तक भी कहते हैं कि तिवाड़ी में ज्ञान और विज्ञान की कोई कमी नहीं हैं वो सारे नियम-कायदे जानते हैं। प्लस को माइनस और माइनस को कैसे प्लस किया जाता है वो भी उनको पता है।
उनके इसी महान गुण के कारण भाजपा के कई नेताओं को अपनी कुर्सी जाने का डर सताने लगा है।क्योंकि सांसद बनने के बाद वो आलाकमान से ज्यादा संपर्क में रहेंगे। तो कहीं सुभाष चंद्रा को जिताने के चक्कर में जान-बूझकर कोई अनजानी गलती नहीं हो जाए!
यहां यह बात तो तय है कि तिवाड़ी को राज्यसभा सदस्य बनने के लिए बहुत मुश्किलों से गुजरना होगा क्योंकि बेगानों के साथ अपने भी उनको नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।लेकिन भाजपा भी पूरी तरह से चाक-चौबंद होकर घनश्याम तिवाड़ी को जिताने में कोई कोताही नहीं बरतेगी।
तो क्या तिवाड़ी भी अपने जमाने में ऐसे ही थे…
पुराने राजनीतिक जानकारों और तिवाड़ी के साथ रहने वाले लोगों का ये भी कहना है कि तिवाड़ी भी जब राजस्थान की राजनीति की मुख्य धूरी हुआ करते थे वो भी इसी तरह से व्यवहार किया करते थे। लोगों का कहना है कि तिवाड़ी अपने लोगों से दूरी बना कर रखते थे कि कहीं कोई काम नहीं बता दे, कार्यकर्ताओं को अपनी हद में रहने का भी संदेश देते रहते थे तो आज वही कार्यकर्ता भाजपा के बड़े नेता हैं जो शायद सबक सिखाने में अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा दे।
भाजपा की है पूरी तैयारी घनश्याम तिवाड़ी अबकी बारी
वैसे भाजपा और संघनिष्ठ लोग घनश्याम तिवाड़ी को सुरक्षित निकालने के लिए पूरी तैयारी करके बैठे हैं। चुनाव पूर्व ही विधायकों का बहुत सख्त वाला प्रशिक्षण होगा । साथ ही पार्टी व्हिप भी जारी करेगी। जीत के लिए घनश्याम तिवाड़ी को 41 मत चाहिए तो पार्टी उन्हीं लोगों को घनश्याम तिवाड़ी को पहली वरीयता से वोट देने का आदेश देगी जो सिर्फ और सिर्फ भाजपा को समर्पित लोग होंगे । वहीं दूसरी ओर निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को गुट बाजी और खेमे में बंटे हुए लोगों का पहली वरीयता का वोट जाएगा जिससे कहीं कोई चूक ना हो जाए।
आईए समझते हैं राज्यसभा चुनाव के लिए वोटों का गणितीय फार्मूला
कुल विधायकों की संख्याx100/(राज्यसभा की सीटें+1)+1
फार्मूले को अच्छी तरह समझने के लिए राजस्थान का उदाहरण लेते हैं। यहां राज्य में विधानसभा की कुल सीटें 200 हैं। यहां राज्यसभा की 4 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। अब देखते हैं कि किसी उम्मीदवार को जीत के लिए कितने वोट की जरूरत है।
200X100/(4+1)+1=4001
सबसे पहले विधायकों की कुल संख्या में 100 का गुणा करते हैं यानी 200X100 जो 20000 हुआ। अब राज्यसभा की सीटों+1 से इसमें भाग देते हैं यानी 4+1 यानी 5 से भाग देंगे। 20000/5 यानी 4000। अब अंत में इसमें एक जोड़ते हैं तो 4001 आया। यानी जीत के लिए 4001 वोटों की जरूरत है। चूंकि एक विधायक के पास 100 वोट हैं तो जीत के लिए कम से कम 41 विधायकों के प्रथम वरीयता वाले वोट जरूरी होंगे